- Tuesday, 25 July 2017
- Last Updated: Tuesday, 25 July 2017 13:00
- Written by Khoji Narad Team
नई दिल्ली । भारतीय आइटी कंपनियों के लिए मुश्किल बनी सिंगापुर की सख्त वीजा नीति में कोई राहत मिलने की संभावना नहीं है। सिंगापुर के उप प्रधानमंत्री थारमन शनमुगरत्नम ने कहा है कि उसके देश में पहले ही एक तिहाई कर्मचारी विदेशी हैं। विदेशी कर्मचारियों के आगमन को नियंत्रित करने के लिए बिना समुचित नीति बनाये वीजा देना ठीक नहीं होगा। सिंगापुर के उप प्रधानमंत्री का यह बयान भारतीय आइटी कंपनियों के लिए खासी अहमियत रखता है। कंपनियां सिंगापुर को गेटवे बनाकर आसपास के क्षेत्र में अपने ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करती हैं। टीसीएस, एचसीएल, इंफोसिस और विप्रो समेत भारत की सभी प्रमुख आइटी कंपनियों की सिंगापुर में मौजूदगी है। भारतीय आइटी प्रोफेशनल्स को वीजा देने में सख्त रुख अपनाने के कारण कंपनियों को सिंगापुर में अपने कर्मचारियों की संख्या समुचित स्तर पर बनाये रखने में दिक्कतें आ रही हैं। शनमुगरत्नम ने कहा कि उनके यहां कुल 55 लाख कर्मचारी हैं। इनमें से 20 लाख कर्मचारी पहले ही विदेशी हैं। जॉब मार्केट में विदेशी कर्मचारियों का बेरोकटोक प्रवाह अच्छा नहीं है। इस प्रवाह को समुचित नीति बनाकर नियंत्रित किये जाने की जरूरत है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि कर्मचारियों के पूरी तरह मुक्त प्रवाह से अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। इससे उत्पादकता को बढ़ाने में प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। यहां दिल्ली इकोनॉमिक्स कांक्लेव में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरी दुनिया में वास्तविकता है कि कर्मचारियों का अबाध प्रवाह अच्छा नहीं है। हालांकि सिंगापुर वस्तुओं और सेवाओं के उदारीकरण का मजबूत समर्थक है। आइटी कंपनियों के संगठन नैस्कॉम ने अप्रैल में कहा था कि सिंगापुर में वीजा की सख्ती के कारण भारतीय आइटी कर्मचारियों की संख्या घटकर एक लाख से कम रह गई है। इससे कंपनियों को भविष्य में ग्राहकों से नए ठेके लेने में परेशानी आ सकती है। नैस्कॉम के अध्यक्ष आर. चंद्रशेखर के अनुसार कंपनी के भीतर ट्रांसफर पर भेजे जाने वाले कर्मचारियों के वीजा में भारी कमी आई है। भारतीय कंपनियां तेज विकास दर वाले एशियाई बाजारों में मौजूदगी बढ़ाने के लिए सिंगापुर में भारी निवेश कर रही हैं। हालांकि अमेरिका और यूरोप आइटी कंपनियों का करीब 80 फीसद कारोबार है। भारत और सिंगापुर व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) लागू कर चुके हैं। यह 2005 में ही प्रभावी हो गया था। सिंगापुर एशियाई ब्लॉक का हिस्सा है जिसके साथ भारत इस तरह के समझौते कर चुका है। प्रस्तावित मेगा डील रीजल कंप्रहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) के लिए हो रही बातचीत में भी दोनों देश शामिल हैं। बीते वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान दोनों देशों के बीच कारोबार 16.65 अरब डॉलर का रहा था।
Special Story
- सबसे ज़्यादा पढ़ा हुआ
- अधिकांश टिप्पणी